सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, तीन जगतके अधिपती, परमतारक श्री मुनिसुव्रत स्वामी एवम् श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवानके चरणोमें कोटीश: वंदन ! मानव भव दुर्लभ अति! पुण्ययोगसे पाय श्रमण भगवान महावीर स्वामीने, पांवापुरीमें अपने अंतिम प्रवचनमें यही कहा था दुल्लहे खलु माणुसे भव मनुष्य जन्म निश्चितही दुर्लभ है। मेरे प्राणप्रिय पतिदेव, देवगुरू भक्तिकारक स्व. श्री. डॉ. हिराचंद छगनलाल शहा आपने जीवन में हमेशा सर्व मंगल मांगल्य म्र्थातसर्वे भवन्तु सुखिनऐसा चिंतन करके बहुजन हिताय बहुजन सुखाय विधायक कार्य अपने हाथों सफल संपन्न किये! परहित के साथ आत्म कल्याण साध लिया और अपना यह दुर्लभ मानव भव, सार्थ कर दिया! कमल पुष्पको खिलनेके लिए नंदनवनका होना जरूरी नहीं है। वह तो कीचडमें भी विकसित होकर सारे आसमंतको नंदनवन बना देता है। गुलाब पुष्प भी कॉटोंसे भरे पेडपर ही खिलता है, और अपने आकर्षक रूपरंग और महकसे वातावरणको प्रसन्न कर देता है। तेजस्वी हिरा तो कोयलेकी खदानमें पाया जाता है, मगर स्वयंभूत तेजसे चमक उठता है। ठिक इसी तरह डॉक्टर साहेब, आपने अपना व्यक्तिमत्व स्वयं के पुरूषार्थ से ही उज्वल एवम् यशस्वी बना दिया।…..
(किताबासे)
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