डॉ. पांचाल हिंदी के अतिरिक्त उर्दू भाषा और साहित्य के भी पारंगत विद्वान हैं, उन्होंने उर्दू की रचनाओं में दक्खिनी, उर्दू नाम से लेखों को पढकर उनके मन में ये धारना बनी की उर्दू के विद्वान जिसे दक्खिनी उर्दू कह रहे हैं। वे वास्तव में हिंदी का ही आरंभिक रूप हैं। इसिलिए उन्होंने उर्दू की सभी दक्खिनी के पृष्ठों का अध्ययन किया। इसी बीच हैंदराबाद में हिंदी संमेलन आयोजित हुआ उसमें डॉ. रामधारी सिंह दिनकर आंध्र के तत्कालिन शिक्षा मंत्री श्री. पी. व्ही. नरसिंहराव और आचार्य क्षेमचंद्र (सूमन) जैसे विद्वान सम्मिलीत थे, इस अवसर पर डॉ. पांचाल ने दक्खिनी के प्रसिद्ध विद्वान डॉ. श्रीराम शर्मा के निवास पर उनसे भेट की और दक्खिनी हिंदी पर हिंदी में पीएच. डी. करने के लिए उनसे उपयुक्त परामर्श लिया। तद्उपरांत उन्होंने पीएच. डी. के लिए अपने शोध प्रबंध की रूपरेखा तय्यार की। इन्होंने दक्खिनी हिंदी का आलोचनात्मक साहित्य नाम से अपनी शोध की रूपरेखा मेरठ विश्वविद्यालय को प्रस्तुत की किंतु शोध प्रबंध की चयन समिति के अध्यक्ष डॉ. हरवंशलाल शर्मा ने इसे स्वीकार करते हुए सलाह दी कि वे हिंदी के पारिभाषिक शब्दावली का अध्ययन शीर्षक से शोधकार्य करे। इसे डॉ. पांचाल ने सहस्विकार कर लिया| और मेरठ विश्वविद्यालय को अपना शोधप्रबंध सन १९७४ को प्रस्तुत किया। जिस पर उन्होंने पीएच. डी. की उपाधि प्रदान की हैं। (शोधप्रबंध का विषय हैं, &#039दक्खिनी हिंदी के कवियों की पारिभाषिक शब्दावली का अध्ययन’) प्रस्तुत ग्रंथ को लिखने के लिए डॉ. पांचाल ने अब तक उपलब्ध नस्तलिक लिपि में लिखे उर्दू ग्रंथों और कतिपय हिंदी में प्रकाशित पुस्तकों का अनुशीलन किया और दक्खिनी के कवियों की उपलब्ध मूल रचनाओं के आधार पर शब्दावली का चयन किया।.....(किताबसे)
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