`संविधान समीक्षा` जाने-माने पत्रकार श्री हरिकृष्ण निगम द्वारा आज के एक ऐसे चर्चित विषय में जुड़े मुख्य सरोकारों पर एक सार्थक चिन्नन है, जिसके माध्यम में उन्होंने देश के संविधान पर पुनर्विचार की आवश्यकता के अनेक पक्षी को प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया है। उन्होंने एक नई दृष्टि द्वारा पिछले पाँच दशको की संवैधानिक यात्रा में राजनीनिक व्यवहार और आचरण के पहलुओं को आधार बनाकर अनेक ऐसे तथ्यों को सामने रखा है, जो देश में भुला से दिये गये हैं इन टिप्पणियों में जो समस्यायें उठाई गई हैं और जो सुझाव दिये गए हैं, उन्हें प्रवृद्ध पाठकों को कुछ मालिक चिन्नन की आवश्यकता महसूस होगी, ऐसा मेरा विश्वास है। आज अनपेक्षित दुराग्रहों के कारण लोग असहमति को बर्दाश्त नहीं कर सकते है और सविधान के पुनर्वीक्षण को आवश्यक नहीं मानने है। इस ग्रंथ में उनकी मानसिकता के अनेक पक्ष उजागर हुए है। संवैधानिक यात्रा के गन पाँच दशको में, जिसमें हठधर्मिता के राजनैनिक रुपों के अलावा, भाषाई प्रश्नो की संवैधानिक स्थिति, नौकरशाही, न्यायिक सक्रियता, राज्यपालों के अधिकार और केन्द्र व राज्य के सम्बंधों जैसे संवेदनशील मुद्दों पर जिस तरह पैनी और गवेषणात्मक दृष्टि डाली गई है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। श्री निगम आज देश के प्रतिष्ठित पत्रकारों में से एक है। मुझे विश्वास है कि उनके गन तीन वपों में ग्रीशिन चार ग्रंथों की तरह यह प्रयास भी हिन्दी जगत में यथोचिन स्थान प्राप्त करेगा। निर्विवाद रूप से श्रतिर्गनिगम वह ग्रंथ प्रशंसनीय, पठनीय और संग्रहणीय है।
-डॉ. गिरिजा शंकर त्रिवेदी
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